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नज़्म
कि सब्र-ओ-शुक्र से मामूर है ईसार से भी दिल
मगर आख़िर को थक जाता है यूँ आज़ार से भी दिल
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
नज़्म
बे-तेरे क्या वहशत हम को, तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
तेरी मौजों में है ये किस की सदा-ए-दिल-फ़रेब
गा रही है कौन ये ग़ारतगर-ए-सब्र-ओ-शकेब
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ख़िर्मन-ए-सब्र-ओ-सुकूँ ख़ाक न हो क्यों जल कर
बिजलियाँ कौंद रही हैं मिरे काशाने में
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
दिलों के अंदर छुपे बुतों को मिटा रहे हो
दिलों के अंदर छुपे दरिंदों को संग-ए-सब्र-ओ-ग़िना से
वहीद क़ुरैशी
नज़्म
मौसम-ए-सर्मा में ऐ सरमाया-ए-सब्र-ओ-शकेब
बे-सदा तेरा पस-ए-पर्दा था साज़-ए-दिल-फ़रेब