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नज़्म
नहीं है वास्ता कुछ भी मुझे मसनद-नशीनों से
मैं हूँ बस बे-नवाओं की नवा-ए-गुम-शुदा यारो
सदा अम्बालवी
नज़्म
किया क्या ऐ सदा तू ने बता आ कर ज़माने में
गुज़ारी ज़िंदगी सारी फ़क़त पीने-पिलाने में
सदा अम्बालवी
नज़्म
राज़-ए-क़ुदरत हमें समझाया है इक गुल ने 'सदा'
गुल नए खिलते रहें इस लिए झर जाता है गुल