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नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
विसाल-वा'दों की चंद चिंगारियों को साँसों की आँच दे कर
शरीर शो'लों की सर-कशी के तमाम तेवर
मोहसिन नक़वी
नज़्म
ठुमक ठुमक के चले थे घरों के आँगन में
'अनीस' ओ 'हाली' ओ 'इक़बाल' और 'वारिस-शाह'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
माँ तिरी फ़ुर्क़त का सदमा मैं नहीं सह पाऊँगी
किस तरह यादों से तेरी अपना दिल बहलाऊँगी
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मैं वो शजर था
कि मेरे साए में बैठने और शाख़ों पे झूलने की हज़ारों जिस्मों को आरज़ू थी