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नज़्म
लड़कपन की रफ़ीक़ ऐ हम-नवा-ए-नग़मा-ए-तिफ़ली
हमारी ग्यारह साला ज़िंदगी की दिल-नशीं वादी
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तेरे ही नग़्मों से बे-ख़ुद आबिद-ए-शब-ज़िंदा-दार
बुलबुलें नग़्मा-सरा हैं तेरी ही तक़लीद में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कि इक चालीस-साला तिफ़्ल की रोज़ा-कुशाई है
फ़रिश्ते इस पे हैराँ दम-ब-ख़ुद सारी ख़ुदाई है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
वो जवाँ हो के अगर आतिश-ए-सद-साला बनी
ख़ुद ही सोचो कि सितम-गारों पे क्या गुज़रेगी
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
रहनुमाओं का हमारे रहनुमा रुख़्सत हुआ
दिल पे करती थी असर जिस की सदा रुख़्सत हुआ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
सियह-मस्ती की देता हूँ सला रिंदान-ए-मशरिक़ को
ख़ुमिस्तान-ए-अरब के नश्शे में हो कर मैं चूर आया
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
हज़ार साला मसाफ़त ख़याल-ओ-वहम-ओ-गुमाँ की
और इस के बाद भी पिन्हाँ शुआ'-ए-लम-यज़ली है