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नज़्म
तो वासिल-इब्न-ए-अता की बातें जो रज़्म-गाह-ए-कलाम-अंदर
चुनी गई थीं समाअ'तों ने कभी सुनी हैं
इलियास बाबर आवान
नज़्म
कि वो किसी बात पर यक़ीं भी न करने पाते
गिरे थे उन की समाअ'तों और बसारतों पर दबीज़ पर्दे
ताज सईद
नज़्म
समाअतों में तिरे लफ़्ज़ घुल रहे हैं ठहर
सुकूत-ए-ज़ीस्त के सब दाग़ धुल रहे हैं ठहर