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नज़्म
इक शाम जो उस को बुलवाया कुछ समझाया बेचारे ने
उस रात ये क़िस्सा पाक किया कुछ खा ही लिया दुखयारे ने
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अक़्ल की बातें कहने वाले दोस्तों ने उसे समझाया
उस को तो लेकिन चुप सी लगी थी ना बोला ना बाज़ आया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कभी खेला जो कोई खेल गंदा मुझ को समझाया
कभी चुग़ली किसी की मैं ने खाई तो बुरा माना
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
नज़्म
समझाया मैं ने जा कर हामिद को उस के घर पर
यूँ मत सुनाओ सब को क़िस्सा सुना सुनाया
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
माँ ने बच्चे को ये समझाया बहुत देर तलक
ऐ नए साल तिरे जश्न-ए-तरब का मतलब
सय्यद अब्बास रज़ा तनवीर
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
दिल-ए-बरगश्ता को लेकिन ये मैं ने बात समझाई
''नहीं कुछ सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार के फंदे मैं गीराई''