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नज़्म
कसे हुए एकतारे पर हैं गेंदे के दो फूल
मेहंदी लगे हाथों पर हीरे मोती जड़े दो नक़्श
इलियास बाबर आवान
नज़्म
गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए-महताब से रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ज़ुल्फ़ की छाँव में आरिज़ की तब-ओ-ताब लिए
लब पे अफ़्सूँ लिए आँखों में मय-ए-नाब लिए