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नज़्म
नींद में डूबी हुई आँखों से वाबस्ता ख़्वाब
तेज़ किरनों की सिनानों पे ही रुस्वा सर-ए-आम
वहीद अख़्तर
नज़्म
शिद्दत-ए-दर्द-ओ-अलम से जब भी घबराता हूँ मैं
तेरे नग़्मों की घनी छाँव में आ जाता हूँ मैं
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
यौम-ए-आज़ादी ने यूँ छिड़का फ़ज़ाओं में गुलाल
गुल्सिताँ से भीनी भीनी ख़ुशबुएँ आने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
फिर बर्क़ फ़रोज़ाँ है सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर रंग पे है शोला-ए-रुख़्सार-ए-हक़ीक़त