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नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये भी इक सरमाया-दारों की है जंग-ए-ज़रगरी
इस सराब-ए-रंग-ओ-बू को गुलिस्ताँ समझा है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
कहाँ गई वो नींद की, शराब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
तिरे होंटों की शादाबी है रंगत में शराब-आसा
तिरे रुख़्सार की महताबियाँ हैं आफ़्ताब-आसा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
फ़रेब खाए हैं रंग-ओ-बू के सराब को पूजता रहा हूँ
मगर नताएज की रौशनी में ख़ुद अपनी मंज़िल पे आ रहा हूँ
जमील मज़हरी
नज़्म
सराब हों वहम हों गुमाँ हों
ये लफ़्ज़ तेशा हैं जिन से अफ़्कार अपनी सूरत तराशते हैं