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नज़्म
मेरे दिल को याद है अब तक वो सत्तावन की जंग
जिस के बा'द इस सरज़मीं पे छा गए अहल-ए-फ़रंग
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
सन सतावन में लड़ी हम ने जो आज़ादी की जंग
उस से वाबस्ता रही थी तोलस्तोय की उमंग
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मेरे वादों से डरो मेरी मोहब्बत से डरो
अब मैं अल्ताफ़ ओ इनायत का सज़ा-वार नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक रोज़ मगर बरखा-रुत में वो भादों थी या सावन था
दीवार पे बीच समुंदर के ये देखने वालों ने देखा