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नज़्म
बसंत आया तो यूँ आया कि मैं भी जैसे उठ बैठा
सवेरा होते ही हर सम्त से झोंके हवाओं के
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
बुझ गया रौशन सवेरा माँ तिरे जाने के बा'द
छा गया हर सू अंधेरा माँ तिरे जाने के बा'द
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
अभी दिमाग़ पे क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र है सवार
अभी रुकी ही नहीं तेशा-ज़न के ख़ून की धार