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नज़्म
जन्नतें आबाद हैं तेरे दर-ओ-दीवार में
और तू आबाद ख़ुद शाइ'र के क़ल्ब-ए-ज़ार में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हम भी आज़ाद वतन को कभी देखें 'साबिर'
ये दुआ विर्द-ए-ज़बाँ शाम-ओ-सहर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
तुम चमन-ज़ाद हो फ़ितरत के क़रीं रहते हो
दिल ये कहता है कि तुम महरम-ए-असरार भी हो
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
कल हुआ शब को जो मिंटो रोड पर मेरा गुज़र
इक दुकाँ पर इत्तिफ़ाक़न इक तबीब आया नज़र