aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sayyad-ul-bashar"
वो तुझ को और तिरा मुद्दआ' नहीं समझेतुझे बशर से जो फ़ौक़-उल-बशर बताते हैं
बाला-ए-कोह साया-ए-अब्र-ए-बहार मेंपरवीन-ओ-माहताब का काशाना चाहिए
ख़ाक पर सर-बसर है बारिश-ए-नूरता-ब-हद्द-ए-नज़र है बारिश-ए-नूर
मौसम बदल रहा हैऔर बहार के डेरे
साथी न कोई बिछ्ड़ेंबाग़-ओ-बहार मन हो
वो शायद अब नहीं होंगे!
क़दम के नीचे है फ़र्श-ए-ज़मुर्रदीं 'रा'ना'है सर पे साया-ए-अब्र-ए-बहार होली में
और बाहर धूप में फैला दूँगा
मैं अपने अंजाम से पहलेशायद इक दिन
सर पे जंगली पेड़ का सायाऔर
अमलतास सी मैंमौसम-ए-बहार में
होगा कुछ कमशायद उस दम
शायद एक लड़की कीथरथराती पलकों में
और बहार की ख़ुश-बूआँखों में प्यार था
सवाद-ए-महरुमी-ए-बशर तो नहींगुज़र-गाह-ए-ना-मुरादी
अब के बार फिरमौज-ए-बहार ने
शब का सुकूत टूटासुब्ह-ए-बहार आई
हमारा दौर अब आया इस ए'तिमाद की ख़ैरहमारे नाम पयाम-ए-बहार भी होंगे
और बाहरप्यास का सहरा मुसलसल मुँह चिढ़ाता था
और बाहर सुर्ख़ आँधीएक पागल कुत्ता अपनी लम्बी
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