aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "seminar"
तहफ़्फ़ुज़-ए-हुक़ूक़-ए-निसवाँ का सेमिनार होया दस्तार वालों के बयान
बचपन के दुख कितने अच्छे होते थेतब तो सिर्फ़ खिलौने टूटा करते थे
उस रोज़ मौसम-ए-ख़िज़ाँ की पहली बारिश हुईजब उस ने मेरे दर से आख़िरी बार क़दम निकाला
तुझे ए'तिबार-ए-सहर भी हैतुझे इंतिज़ार-ए-बहार भी
सफ़्हा-ए-दिल से तिरा नाम मिटाने में मुझे देर लगीपूरी इक उम्र की देर!
ये आँखें बिल्कुल वैसी हैंजैसी मिरे ख़्वाब में आती थीं
ख़िज़ाँ के ज़र्द पत्तों काकोई साया नहीं होता
सफ़र आग़ाज़ करते हैंकिसी अंजान मंज़िल का
दिल बढ़ा उस की पज़ीराई कोहाथों में उठाए
पहला मौसमजल्दी आना
हिज्र की उम्र बढ़ी है तो हम उन आँखों कोअब किसी ख़्वाब-नगर में नहीं जाने देंगे
कभी नीलगूँ आसमाँ के तलेसब्ज़ साहिल पे मिलने का वा'दा हुआ था
तुम्हारे हिज्र के मोतीअभी पलकों पे रक्खे हैं
इन दरख़्तों के गहरे घने, ख़्वाब-आलूद साए मेंख़ामोश, हैरान चलता हुआ... एक रस्ता
समुंदर की ख़ुश्बूकहीं दूर से आ रही है,
और ख़ुद भी है आवारा बादलकभी तो बिन बरसे उड़ जाए
पिछले पहर की रात अजब हादिसा हुआसोने से पहले चाँद ही
तू शहर में नहीं हैतू शहर-ए-जाँ के अंदर
मैंपूनम का चाँद हूँ
मेरे हमराहदुखों का ये झमेला क्यों है
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