aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "seva-e-foras"
विसाल-ए-जाँ-फ़ज़ा तो क्याफ़िराक़-ए-जाँ-गुसिल की भी
खड़ी है सितम-कश तमन्ना किनारा-ए-फ़ुरात
छटी बारवो दजला-ओ-फ़ुरात के दरमियान
'जोश' ओ 'फ़िराक़' ओ 'पंत' हैंतेरे अदब के तर्जुमाँ
अँधेरी है मिरी दुनिया लुटी-लुटाई हुईपहुँच सकेगी भी तुझ तक मिरी नवा-ए-फ़िराक़
अहल-ए-फ़ारस ने चूहे सेताऊन का तअल्लुक़ पहचाना
मैं ने सोचा कि ऐसे में बहता नहींअश्क-ए-आब-ए-फ़ुरात
बे-दिली शेवा-ए-अर्बाब-ए-मुहब्बत ठहराअब कोई आए कि जाए ''तन्नाहू-याहू''
पाँव के नीचे अन-गिनत राहेंबे-हिसाब नशेब ओ फ़राज़
कोई आईना-दार-ए-हुस्न-ए-फ़ारसकिसी में हुस्न-ए-यूनानी के जौहर
मुझे महसूस होता हैकि मर्ग-ए-ज़ात के एहसास से भर जाऊँगा फ़ौरन
दस्तूर था जिन का संग-बारीवो 'फ़ैज़'-ओ-'फ़िराक़' ज़ियादा
गर कभी ख़ल्वत में छेड़ा क़िस्सा-ए-शाम-ए-फ़िराक़मुस्कुराना मुस्कुरा कर टाल जाना याद है
रात उसी तरहमेरे जिस्म के नशेब-ओ-फ़राज़ से गुज़रती हुई
रोज़ गाएगी सहर तहनियत-ए-जश्न-ए-फ़िराक़आओ आने की करें बातें कि तुम आए हो
लज़्ज़त-ए-वस्ल हो कि ज़ख़्म-ए-फ़िराक़जो भी हो तेरी मेहरबानी है
कोहसारों के नशेब-ओ-फ़राज़ बना करते हैंसारे घर को धोती है
न कोई हीला-ए-तेशा-कारीन मदावा-ए-फ़रार
खुरदुरे जिस्म के नशेब-ओ-फ़राज़जानने की हवस में जिस की ज़बाँ
मीर-ओ-ग़ालिब हुए हैं उर्दू केऔर नसीम-ओ-फ़िराक़ शैदाई
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