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नज़्म
ऐन रशीद
नज़्म
लफ़्ज़ तो बाँझ हैं जज़्बों की क़द्र क्या जानें
ज़िंदगी बार चुके हों तो क़हर क्या जानें
शाइस्ता मुफ़्ती
नज़्म
मैं जब पलकों के दरवाज़ों पे उतरूँ तो रौशनियों से झोली भर लूँ
ये सारे अनोखे दुख भरे दिन
शाइस्ता हबीब
नज़्म
घर ऐ दिल-ए-बे-क़रार ज़िंदाँ से कम नहीं क़ैद कौन काटे
हसीन सरमा का चाँद दीवाना-वार को बुला रहा है