aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shab-e-intizaar"
चराग़ राह में उस के अमल से जलने लगेलो आज सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार आ ही गई
छिटके हुए तारे भी अब डूबते जाते हैंबेताबी-ए-दिल मेरी और वो शब-ए-तन्हाई
ग़म-ए-फ़िराक़ शब-ए-इंतिज़ार सुब्ह-ए-विसालबस एक गर्द-ए-ज़माना मुहीत है सब पर
इन की क़िस्मत में शब-ए-माह को रोना कैसाइन के सीने में न हसरत न तमन्ना कोई
शहर-ए-दिल की गलियों मेंशाम से भटकते हैं
उजाला सा उजाला है तिरी शम-ए-हिदायत काशब-ए-तीरा में भी इक रौशनी महसूस होती है
मारा हुआ हूँ गो ख़लिश-ए-इंतिज़ार कामुश्ताक़ आज भी हूँ पयाम-ए-बहार का
शाम-ए-अलम-नुमा है शब है सुकूत-अफ़्ज़ाओढ़े हुए है गोया चादर स्याह दुनिया
गुज़र रहे हैं शब ओ रोज़ तुम नहीं आतींरियाज़-ए-ज़ीस्त है आज़ुरदा-ए-बहार अभी
ये धूप धूप शब-ओ-रोज़ सुलगते लम्हेये तीरगी ये तजल्ली ये कैफ़ियत ये अज़ाब
ख़ुशबू भी उड़ीऔर गेसु-ए-शब में जा उलझी
आज फिर फ़न्नी ख़राबी हो गई दो-चार बारइंतिज़ार ओ इंतिज़ार ओ इंतिज़ार ओ इंतिज़ार
मिरे वजूद की वहशत ने रात भर मुझ कोग़ुबार-ए-क़ाफ़िला-ए-इंतिज़ार रक्खा है
फिर भी लेकिनइक ग़ुबार-ए-इंतिज़ार
नशिस्त-गाह-ए-इंतिज़ार में बहुत ही फीकी मुस्कुराहटों के साथफ़ैसले के इंतिज़ार में लहू की गर्दिशों के साथ
आख़िरश टूटा तिलिस्म-ए-इंतिज़ारमैं मगर तिश्ना रही
वो पहली शब-ए-मह शब-ए-माह-ए-दो-नीम बन जाएगीजिस तरह साज़-कोहना के तार-ए-शिकस्ता के दोनों सिरे
के हार उस के तो सर पे ईंधनख़ुदाया कैसी शब-ए-ज़फ़ाफ़-ए-अबू-लहब थी
उन से पूछोशब-ए-ऐश-ओ-निशात क्या है
शब-ए-मुंजमिद शब-ए-बे-ज़बाँसे लिपट के सोएगा सुब्ह तक
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