आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "shadi ki aakhiri salgirah"
नज़्म के संबंधित परिणाम "shadi ki aakhiri salgirah"
नज़्म
हर इक शय को बिल-आख़िर नूर के साँचे में ढलना है
हमें भी दो क़दम इस रौशनी के साथ चलना है
कौसर महमूद
नज़्म
लिखाने नाम सच्चे आशिक़ों में जब भी हम निकले
इरादों में हमारे जाने कितने पेच-ओ-ख़म निकले