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नज़्म
हाँ कज करो कुलाह कि सब कुछ लुटा के हम
अब बे-नियाज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझे ऐ हम-नशीं रहने दे शग़्ल-ए-सीना-कावी में
कि मैं दाग़-ए-मोहब्बत को नुमायाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ून-ए-दिल की कोई क़ीमत जो नहीं है तो न हो
ख़ून-ए-दिल नज़्र-ए-चमन-बनदी-ए-दौरां कर दे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरे लब पर क़िस्सा-ए-नैरंगी-ए-दौराँ नहीं
दिल मिरा हैराँ नहीं ख़ंदा नहीं गिर्यां नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर्दिश-ए-दौराँ पे कोई फ़त्ह पा सकता नहीं
तेरे लब पर शिकवा-ए-आलाम-ए-दौराँ है तो क्या