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नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उजड़ी मंडी, लाग़र कुत्ते, टूटे खम्बे ख़ाली खेत
क्या इस नहर के पुल के आगे ऐसा शहर-ए-ख़मोशाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
बे-तेरे क्या वहशत हम को, तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है