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नज़्म
मक़ासिद मज़हब ओ मिल्लत के बदले दौर-ए-आलम ने
सहाइफ़ की शरह बदली किताबों का मतन बदला
सय्यद तसलीम हैदर क़मर
नज़्म
हर इक अंदाज़ रौशन हर बयाँ पुर-कैफ़ है इस का
अदाएँ जिस क़दर भी हैं वो शरह-ए-जज़्बा-ए-दिल हैं
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
तेरे हर लफ़्ज़ में हो दर्द-ए-मोहब्बत की तड़प
हर सुख़न शरह-ए-बयान-ए-ख़लिश-ए-दिल हो जाए
सरीर काबिरी
नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है