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नज़्म
मिरी बिगड़ी हुई तक़दीर को रोती है गोयाई
मैं हर्फ़-ए-ज़ेर-ए-लब शर्मिंदा-ए-गोश-ए-समाअत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरा जोबन कि जो शर्मिंदा-ए-सद-फ़ित्ना है
सुक्र ये तेरे हुज़ूरी का बयाँ कैसे हो
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
ये हिन्दी वो ख़ुरासानी ये अफ़्ग़ानी वो तूरानी
तू ऐ शर्मिंदा-ए-साहिल उछल कर बे-कराँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कुछ रोज़ का मुसाफ़िर-ओ-मेहमाँ हूँ और क्या
क्यूँ बद-गुमाँ हों यूसुफ़-ए-कनआ'न-ए-लखनऊ