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नज़्म
रेस्तोराँ में सजे हुए हैं कैसे कैसे चेहरे
क़ब्रों के कत्बों पर जैसे मसले मसले सहरे
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
दिल पहाड़ों पर चला जाए कि मैदानों में हो
भीड़ में लोगों की या ख़ाली शबिस्तानों में हो