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नज़्म
तमाशा इक अजब सा एक दिन यूँ राह में देखा
किसी को देखते हैं लोग इक मजमा इकट्ठा है
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
लौह-ए-तारीक पर आब-ए-महताब से इक कहानी के अंजाम में दो सिरों को मिलाते हुए
अपनी बीनाई खोता हुआ