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नज़्म
मोहब्बत ही से पाई है शिफ़ा बीमार क़ौमों ने
किया है अपने बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता को बेदार क़ौमों ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जानता हूँ आह में आलाम-ए-इंसानी का राज़
है नवा-ए-शिकवा से ख़ाली मिरी फ़ितरत का साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गूँज टापों की न आबादी न वीराने में है
ख़ैर तो है अस्प-ए-ताज़ी क्या शिफ़ा-ख़ाने में है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़ुदा अलीगढ़ के मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
भरे हुए हैं रईस-ज़ादे अमीर-ज़ादे शरीफ़-ज़ादे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
तुम्हें उदासी की रंजिशों से रिहा करेंगे
अगरचे हम ऐसे ख़ाक-ज़ादों की दस्तरस में शिफ़ा नहीं है
अरसलान अब्बास
नज़्म
बे-ज़बाँ होगी तो मंटो का क़लम लिक्खेगा
इस शिफ़ा-ख़ाना-ए-अख़लाक़ में नश्तर के क़रीब