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नज़्म
रहेगा यूँ लबों पर शिकवा-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ कब तक
सताएगा भला नाज़ुक दिलों को ये जहाँ कब तक
शौकत परदेसी
नज़्म
गर्दिश-ए-दौराँ पे कोई फ़त्ह पा सकता नहीं
तेरे लब पर शिकवा-ए-आलाम-ए-दौराँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
किस क़दर है दिल में तेरे इल्तिहाब-ओ-इंशिक़ाक़
क्या तुझे भी है किसी से शिकवा-ए-रंज-ए-फ़िराक़