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नज़्म
जब माज़ी गुज़री राह बने बीते लम्हे बोझल यादें
जब उल्फ़त हाथ मले रोए और शिकवे गिले भी ख़ार लगें
कनीज़ फ़ातिमा किरण
नज़्म
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फिर भी होंटों पे कोई शिकवा गिला कुछ भी नहीं
मेरे दिन रात की मेहनत का सिला कुछ भी नहीं
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
तू खिलाता है नए गुल जो रवाँ होता है
रंग ये शाख़-ए-गुल-ए-तर में कहाँ होता है
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
ब-ज़ेर-ए-शाख़-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता मैं सूरत-ए-शम्अ' चुप खड़ी हूँ
फ़ज़ा में कोयल की इक सदा है
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
हर लाला-ए-कुहसार है शक्ल-ए-गुल-ए-राहत
दाग़ उस के हैं या ख़ाल-ए-रुख़-ए-हूर-ए-मसर्रत