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नज़्म
एक शुआ'-ए-नय्यर-ए-आसूदा-ए-रिफ़अत थी तू
इस ख़िज़ान-ए-ज़ीस्त में इक मादर-ए-मिल्लत थी तू
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
दिल को गर्माएँ तो हर ज़र्रे से उस के हो अयाँ
जो हरारत है शुआ'-ए-महर-आलम-ताब में
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
ऐ शुआ-ए-अर्ज़-ए-मशरिक़ तेरी इफ़्फ़त का शिआर
कज करेगा मुल्क ओ मिल्लत की कुलाह-ए-इफ़्तिख़ार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तार-ए-शुआ-ए-मेह्र हैं सतरें बयाज़ की
सुर्ख़ी शफ़क़ की साफ़ है 'उन्वान-ए-सुब्ह-ए-ईद
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
हज़ार साला मसाफ़त ख़याल-ओ-वहम-ओ-गुमाँ की
और इस के बाद भी पिन्हाँ शुआ'-ए-लम-यज़ली है