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नज़्म
ऐंडरोमेडा के कुछ सूरजों की शुआएँ
ज़मीं पर पहुँच कर हमारी शुआ'ओं में शामिल हुई हैं
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
उठ गया ज़ुल्मात का डेरा बढ़ा हर सम्त नूर
मम्बा'-ए-अनवार से फैलीं शुआएँ दूर दूर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
जाता हूँ इजाज़त वो देखो ग़ुर्फ़े से शुआएँ झलकी हैं
पिघले हुए सोने की लहरें मीना-ए-शफ़क़ से छलकी हैं
मजीद अमजद
नज़्म
पहुंचती हैं शुआएँ इस की जिस दम चश्म-ए-हैराँ तक
तसव्वुर मुझ को ले उड़ता है 'सलमा' के शबिस्ताँ तक
अख़्तर शीरानी
नज़्म
रुख़्सार-ए-जहाँ-ताब की पड़ती थीं शुआएँ
या हुस्न के दरिया से कोई मौज रवाँ थी