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नज़्म
चाहता हूँ यूँ हो रंगीं पैरहन और सारियाँ
शुस्त-ओ-शू से भी न ज़ाइल हो सकें गुल-कारियाँ
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
खुली हैं आँखें तो आसमाँ की बुलंदियाँ हैं
हर एक मंज़र गिरफ़्त-ए-फ़िक्र-ओ-शुऊ'र में है
नसीर प्रवाज़
नज़्म
मेरा ये जुर्म कि मैं साहब-ए-इदराक-ओ-शुऊर
मेरा ये ऐब कि इक शाइर ओ फ़नकार हूँ मैं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
कितने मरदान-ए-जरी कितने जवानान-ए-ए-ग़यूर
कितने साहिब-ए-अक़्ल कितने मालिक-ए-फ़हम-ओ-शऊर
अर्श मलसियानी
नज़्म
मेरा ये जुर्म कि मैं साहिब-ए-इदराक-ओ-शु’ऊर
मेरा ये 'ऐब कि इक शा'इर-ओ-फ़नकार हूँ मैं