aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "si.ngaar-ras"
ऐसा भरा हुआ है ग़ज़ल में सिंगार-रसइक जन्नत-ए-समाअ' है फ़िरदौस-ए-गोश है
और इज़हार गुहर बन जाएलफ़्ज़ की बंदिश ताल की संगत रक़्स के तेवर
जो रूह बन के समा जाए हर रग-ओ-पै मेंतो फिर न शहद में लज़्ज़त न साग़र-ए-मय में
ये चाँदनी है कि उमडा हुआ है रस-सागरइक आदमी है कि इतना दुखी है दुनिया में
जो रस्म-ओ-रह केअटूट संगम में ढल चुकी थी
अपनी किरनों से संगसार कर दें तो भीरात के जितने बेटे हैं सब
तुम ने देखे हैं कभी हार-सिंगारवो दिल-आवेज़ से मासूम से दो-रंगे फूल
कमरे में ख़ामोशी है और बाहर रात बहुत काली हैऊँचे ऊँचे पेड़ों पर सियाही ने छावनी डाली है
मैं अपनी औलाद के लिएदूध की एक बोतल
आज आओ सखी बताऊँ तुझेअन-कही बात है सुनाऊँ तुझे
तिरा लहजा निहायत ख़ूबसूरत हैतिरे अल्फ़ाज़ में अनमोल अपना-पन झलकता है
तुम्हारी ख़ामोशियों मेंमुस्कुराते हैं मेरे अल्फ़ाज़
कहने को आम रस्म-ए-शिकायात हो गईलब तक न आई बात मगर बात हो गई
संगम गंगा जमुना का हैंराम मोहम्मद डीसोज़ा हैं
ईसा-ए-अश्क ने चमकाई है पलकों की सलीबप्यार ने दर्द की इंजील को दोहराया है
तुम जो कहते हो मुझ से अक्सरके नाम तेरे पे नज़्म कह दूँ
तो क्या वो झूट थातू ने जो उस लड़की से बोला था
दो समुंदर जहाँ आपस में मिला करते हैंमैं ने कितने सहर ओ शाम गुज़ारे हैं वहाँ
छाई हुई है तीरगी उस पे ये मुँह की है झड़ीरात कटेगी किस तरह हश्र-नुमा है हर घड़ी
आ री मैल कुचैलीभूकी नंगी दुनिया
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