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नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जामे से बाहर निगाह-ए-नाज़-ए-फ़त्ताहान-ए-हिन्द
हद्द-ए-क़ानूनी के अंदर ऑनरेबलों की क़तार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
नहीं तक़सीर-परवाज़-नज़र का कोई कफ़्फ़ारा
क़रार-ए-क़ल्ब-ज़ार-ए-हिंद वार-ए-बरनाई-ए-यूनाँ
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
ज़िंदा-बाश ऐ इंक़लाब ऐ शोला-ए-फ़ानूस-ए-हिन्द
गर्मियाँ जिस की फ़रोग़-ए-मंक़ल-ए-जाँ हो गईं
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
है बुलंदी से तिरी वाबस्ता 'सूफ़ी' शान-ए-हिन्द
तेरी अज़्मत में न आने देंगे फ़र्क़ अरकान-ए-हिन्द
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
इक ज़माना था कि ग़ारत हो रहे थे अहल-ए-हिन्द
अपना मज़हब अपने हाथों खो रहे थे अहल-ए-हिन्द
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
हो गईं वीरान इरफ़ान-ओ-यक़ीं की जन्नतें
ख़ुल्द-ए-ज़ार-हिन्द को दोज़ख़-निशाँ पाता हूँ मैं