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नज़्म
हर भँवर में और हर तूफ़ान में साहिल है तू
सीना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा का धड़कता दिल है तू
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
अभी तो सीना-ए-बशर में सोते हैं वो ज़लज़ले
कि जिन के जागते ही मौत का भी दिल दहल उठे
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
हाँ सँभल जा अब कि ज़हर-ए-अहल-ए-दिल के आब हैं
कितने तूफ़ान तेरी कश्ती के लिए बे-ताब हैं