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नज़्म
जिन की उम्मीदों के दामन में पैवंद लगे हैं
जामा एक तरफ़ सीते हैं दूसरी जानिब फट जाता है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तो सिटे चमक कर सोना हो गए
फिर वही फ़स्ल काटने का वक़्त आया तो मेरे ख़ुलूस की दरांती कुंद हो गई
तबस्सुम ज़िया
नज़्म
मेरे सीने पर मगर रखी हुई शमशीर सी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
पिया पे ये गदाज़िश ये गुमाँ और ये गिले कैसे
सिला-सोज़ी तो मेरा फ़न है फिर इस के सिले कैसे