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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुँह में कुछ खोखले बे-मअ'नी से जुमले रख लो
मुख़्तलिफ़ हाथों में सिक्कों की तरह घिसते रहो
निदा फ़ाज़ली
नज़्म
शहर में ऐसे मुसव्विर हैं जो सिक्कों के एवज़
हुस्न में लैला-ओ-अज़रा से बढ़ा देंगे तुझे
हबीब जालिब
नज़्म
सुकड़ी सिमटी रूहें लेकिन जिस्म हैं दोहरे तिहरे
रेस्तोराँ में सजे हुए हैं कैसे कैसे चेहरे