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नज़्म
वो 'भगत-सिंह' अब भी जिस के ग़म में दिल नाशाद है
उस की गर्दन में जो डाला था वो फंदा याद है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सर्द रातों का हसीं इक ख़्वाब है चेहरा तिरा
क्या कहूँ बस मंज़र-ए-नायाब है चेहरा तिरा
जय राज सिंह झाला
नज़्म
तेरी फ़ितरत में है 'गोबिंद' का आसार मगर
'इब्न-मरियम' का मुक़ल्लिद तिरा किरदार मगर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
ये तुम्हारा देस राजा द्रुप्द का पंचाल देस
हाँ वही रणजीत-सिंह के दौर का ख़ुश-हाल देस
अर्श मलसियानी
नज़्म
गिरी है बर्क़-ए-तपाँ दिल पे ये ख़बर सुन कर
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
एक जिस्म-ए-ना-तवाँ इतनी दबाओं का हुजूम
इक चराग़-ए-सुब्ह और इतनी हवाओं का हुजूम
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
बकरा जो सींग वाला भी है और फ़सादी है
उस ने सियासी-जलसों में गड़बड़ मचा दी है