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नज़्म
कभी रिफ़अ'तों पे लपकीं कभी वुसअ'तों से उलझीं
कभी सोगवार सोएँ कभी नग़्मा-बार जागीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
चिड़ियाँ न चहचहाएँ कल सोएँ हम दोपहर तक
बंद है बन का मदरसा कोई हमें जगाए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
तुम्हारी आँख में जो ख़्वाब सोए हैं वो मेरे हैं
तुम्हारे अश्क ने जो बीज बोए हैं वो मेरे हैं