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नज़्म
क्या दाख मुनक़्का सोंठ मिरच क्या केसर लौंग सुपारी है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ईद आई और क्या क्या याद ताज़ा कर गई
सोंंच बिछड़ों की है दिल में और ख़याल-ए-ईद है