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नज़्म
गीतांजली गीत
नज़्म
सोचता हूँ कि तुझे मिल के मैं जिस सोच में हूँ
पहले उस सोच का मक़्सूम समझ लूँ तो कहूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सब जिसे इंतिहा कहें तू उसे इब्तिदा समझ
हो न इसी समझ पे ख़ुश यूँही बढ़ाए जा समझ