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नज़्म
इक सोची समझी हिसाबी लगावट से
जैसे वो उन ख़ुफ़िया सर-चश्मा-गाहों के हर राज़ को जानती हो
नून मीम राशिद
नज़्म
अपने को पा के तन्हा इक दिन ये उस ने सोचा
करता है मेरी इज़्ज़त हर फूल ही चमन का
अब्दुल मतीन नियाज़
नज़्म
क्या अजब शाम है! देखो ज़ैबुन्निसा
फ़ुर्सतों में किसी पेड़ की नर्म छाँव में सोची हुई
मक़सूद वफ़ा
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
इक बुझी रूह लुटे जिस्म के ढाँचे में लिए
सोचती हूँ मैं कहाँ जा के मुक़द्दर फोड़ूँ