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नज़्म
कौन हल ज़ुल्मत-शिकन क़िंदील-ए-बज़्म-ए-आब-ओ-गिल
क़स्र-ए-गुलशन का दरीचा सीना-ए-गीती का दिल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अजनबी क़ौम के ज़ुल्मत-अफ़्शाँ फरेरे की मनहूस छाँव से आज़ाद हैं
खेत सोना उगलने को बेचैन हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कुछ अंधे सूरमा जो तीर अँधेरे में चलाते हैं
सदा दुश्मन का सीना ताकते ख़ुद ज़ख़्म खाते हैं