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नज़्म
कि जब बाज़ार-ए-ताक़त में मनात-ओ-लात और 'उज़्ज़ा
बदल कर माहियत उ’लु हुबल का विर्द करते हैं
क़मर जहाँ नसीर
नज़्म
कब तक आँखें मूँद के बैठें कब तक धोका खाएँगे
कब तक देश लुटेगा यूँही कब हम होश में आएँगे
सदा अम्बालवी
नज़्म
ये सीनरी है ये ताज-महल ये कृष्ण हैं और ये राधा हैं
ये कोच है ये पाइप है मिरा ये नॉवेल है ये रिसाला है
सलाम मछली शहरी
नज़्म
नन्हे-मुन्ने दो बच्चों की है दिलचस्प कहानी
रूप-नगर की सैर करेंगे बात जो दिल में ठानी
शबनम कमाली
नज़्म
तेरा ये कहते हुए सीने में दिल हिलता नहीं
हम-नशीं क्यों ख़ुद-परस्तारों से मैं मिलता नहीं
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
वो जिन में मुल्क-ए-बर्क़-ओ-बाद तक तस्ख़ीर होता है
जहाँ इक शब में सोने का महल तामीर होता है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ऐ मिरे नूर-ए-नज़र लख़्त-ए-जिगर जान-ए-सुकूँ
नींद आना तुझे दुश्वार नहीं है सो जा
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
कैसी बातें करते हो जी क्या परियों का काम यही है
महल सराए छोड़ के अब वो सड़क किनारे आएँगी क्या