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नज़्म
ख़ुद-फ़रामोश सुबुक-दोश-ए-अमल
अपने अज्दाद के ना-कर्दा गुनाहों की उक़ूबत से बरी
मोहम्मद दीन तासीर
नज़्म
रेशा-ए-अश्क पे टाँके हुए हम बर्ग-ए-मलाल
क़र्या-ए-वहशत ओ उफ़्ताद में हैं ख़ेमा-ब-दोश
इलियास बाबर आवान
नज़्म
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
ये देश कि हिन्दू और मुस्लिम तहज़ीबों का शीराज़ा है
सदियों की पुरानी बात है ये पर आज भी कितनी ताज़ा है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
छोड़ दे मुतरिब बस अब लिल्लाह पीछा छोड़ दे
काम का ये वक़्त है कुछ काम करने दे मुझे