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नज़्म
दूर दरवाज़े के बाहर खड़े वो संतरी दोनों
शाम से आग में बस सूखी हुई टहनियों को झोंक रहे हैं
गुलज़ार
नज़्म
और दुआ माँगी है कि ''ऐ रातों को जुगनू देने वाले!
सूखी हुई मिट्टी को ख़ुशबू देने वाले!