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नज़्म
मुंदमिल ज़ख़्मों से फूटे नई ख़ुनकी ले कर
प्यास जाग उट्ठे सुकूत-ए-दिल-ए-मुज़्तर टूटे
बाक़र मेहदी
नज़्म
सिर्फ़ उसी की तर्जुमानी है तिरे अशआ'र में
जिस सुकूत-ए-राज़-ए-रंगीं को कहें जान-ए-हयात