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नज़्म
तहमतन यानी 'रुस्तम' था गिरामी 'साम' का वारिस
गिरामी 'साम' था सुल्ब-ए-नर-ए-'मानी' का ख़ुश-ज़ादा
जौन एलिया
नज़्म
यानी सुल्ह-ओ-आश्ती का दें हम आपस में पयाम
मुश्किलें आसान हों बिगड़े हुए बन जाएँ काम
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
दिया है सुल्ह-ओ-मुसावात का सबक़ तू ने
अता किया है जुनूँ को नया उफ़ुक़ तू ने
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
शो'ला-ए-जव्वाला है तू बज़्म-गाह-ए-रज़्म में
सुल्ह-ए-मा'नी-ख़ेज़ है तू रज़्म-गाह-ए-बज़्म में
साक़िब कानपुरी
नज़्म
जिस का मज़हब अम्न-जूई जिस का मशरब सुल्ह-ए-कुल
जिस के नग़्मों की लताफ़त है जवाब-ए-बर्ग-ए-गुल