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नज़्म
नोशी गिलानी
नज़्म
मगर पछता रहा हूँ अब तिरी बे-ए'तिनाई पर
कि मैं ने क्यूँ मोहब्बत का सुनहरा ज़ख़्म खाया था
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ख़्वाबों का संसार सुनहरा तह-ख़ानों में भटकेगा
अक़्ल बिचारी जा दुबकेगी सोच की गहरी खाई मैं
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
अनोखी हर अदा उन की निराला तौर होता है
जिसे कहते हैं हम बचपन सुनहरा दौर होता है
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
मुट्ठी में भर कर मुँह में रख लो पी के देखो वो सुनहरा
तीर हूँ मैं जो गले में चुभ के बन जाता है