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नज़्म
अगर उस्मानियों पर कोह-ए-ग़म टूटा तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-सद-हज़ार-अंजुम से होती है सहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गर इश्क़ किया है तब क्या है क्यूँ शाद नहीं आबाद नहीं
जो जान लिए बिन टल न सके ये ऐसी भी उफ़्ताद नहीं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मिरे अय्याश लम्हों की फ़ुसूँ-गर पुर-जुनूनी के लिए
सद-लज़्ज़त आगीं सद-करिश्मा पुर-ज़बानी थे
जौन एलिया
नज़्म
कोई जबीं न तिरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी ज़माने में इस रह-गुज़र से गुज़रा था
ब-सद ग़ुरूर ओ तजम्मुल इधर से गुज़रा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इक ऐसा ख़्वाब जिस के दामन-ए-सद-चाक में कोई मुबारक कोई रौशन दिन नहीं था
अभी कुछ दिन लगेंगे