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नज़्म
ता-हद्द-ए-नज़र जब नज़रों में जन्नत के नज़ारे होते थे
बातों में किनाए होते थे नज़रों में इशारे होते थे
नज़ीर बनारसी
नज़्म
नूर ही नूर है किस सम्त उठाऊँ आँखें
हुस्न ही हुस्न है ता-हद्द-ए-नज़र आज की रात