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नज़्म
ईद आई और क्या क्या याद ताज़ा कर गई
सोंंच बिछड़ों की है दिल में और ख़याल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
ये किस की महकी महकी साँसें ताज़ा कर गईं दिमाग़
शबों के राज़ नूर-ए-मह की नर्मियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
हीर की ताज़ा क़ब्र पे झुका हुआ बैठा है
उल्टी साँसें भरता राँझा ख़ाक से जाने क्या कुछ पूछ रहा है
आकाश 'अर्श'
नज़्म
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
नज़्म
जो कुश्तगान-ए-तिलिस्म-ए-ज़र की हयात-ए-ताज़ा का मो'जिज़ा है
जो अहद-ए-हाज़िर के साहिरों